कम्प्यूटर का वर्गीकरण(Classification of computers)
कम्प्यूटर का वर्गीकरण(Classification of Computers) निम्नलिखित आधार’ पर किया जाता हैं

कम्प्यूटर का वर्गीकरण(Classification of computers)
हार्डवेयर के आधार पर कम्प्यूटर का वर्गीकरण :
हार्डवेयर के आधार पर कम्प्यूटर का वर्गीकरण निम्न प्रकार से हैं
- पहली पीढ़ी के कम्प्यूटर
- दूसरी पीढ़ी के कम्प्यूटर
- तीसरी पीढ़ी के कम्प्यूटर
- चौथी पीढ़ी के कम्प्यूटर
- पांचवी पीढ़ी के कम्प्यूटर
कार्य पद्धति के आधार पर कम्प्यूटर का वर्गीकरण :
- एनालॉग कम्प्यूटर
- डिजिटल कम्प्यूटर
- हाइब्रिड कम्प्यूटर
आकार के आधार पर कम्प्यूटर का वर्गीकरण :
- मेन फ्रेम कम्प्यूटर
- मिनी कम्प्यूटर
- माइक्रो कम्प्यूटर
- सुपर कम्प्यूटर
हार्डवेयर के आधार पर कम्प्यूटर का वर्गीकरण :
हार्डवेयर के आधार पर कम्प्यूटर को विभिन्न पीढ़ियों में बांटा जाता है।
1. पहली पीढ़ी के कम्प्यूटर (1942 -1955 )
- इस पीढ़ी के कम्प्यूटरो में Vacuum Tubes का प्रयोग किया गया था।
- इसमें Machine language तथा Low Level Language का प्रयोग किया गया था , तथा डाटा भंडारण के लिए पंच कार्ड का प्रयोग किया गया था।
- इस पीढ़ी के कम्प्यूटर आकार में बड़े तथा बहुत अधिक ऊर्जा की खपत करने वाले थे , ये लगभग 1 या 2 कमरे के बराबर के आकार के होते थे तथा इनकी भण्डारण क्षमता कम और गति मंद थी।
- ENIAC, UNIVAC, तथा IBMके मार्क-1 इस पीढ़ी उदाहरण हैं।
- 1952 में डॉ. ग्रेस हापर द्वारा Assembly Language के आविष्कार से प्रोग्राम लिखना कुछ आसान हो गया।



2. दूसरी पीढ़ी के कम्प्यूटर (1955-1965)
- इस पीढ़ी में निर्वात ट्यूब के जगह पर ट्रांजिस्टर का प्रयोग किया गया , जो हल्के , छोटे और कम विद्युत खपत करने वाले थे।
- इसकी गति पहली पीढ़ी के कम्प्यूटर के गति की तुलना में तेज थी तथा गलती भी कम होती थी।
- इस पीढ़ी कम्प्यूटरो में पंच कार्ड के स्थान पर चुम्बकीय भण्डारण उपकरणों का उपयोग किया गया जिससे भण्डारण क्षमता एवं गति में वृद्धि हुई।
- इस पीढ़ी में व्यवसाय तथा उद्योग में कम्प्यूटर का प्रयोग संभव हुआ।
- सॉफ्टवेयर में COBOL- Common Business Oriented Language और FORTRAN जैसी High Level Language का विकास आईबीएम द्वारा किया गया। जिससे प्रोग्राम लिखना आसान हो गया।
3. तीसरी पीढ़ी के कम्प्यूटर (1964-1975)
- तीसरी पीढ़ी के कम्प्यूटर में ट्रांजिस्टर के स्थान पर IC- Integrated Circuit चिप का प्रयोग शुरू हुआ जिसमे सैकड़ो इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे ट्रांजिस्टर , प्रतिरोधक और संधारित्र एक छोटे से चिप पर बने होते हैं।
- इलेक्ट्रॉनिक भण्डारण उपकरणों के उपयोग से भण्डारण क्षमता एवं गति में वृद्धि हुई। प्रारम्भ में SSI(Small Scale Integration) और बाद में MSI(Medium Scale Integration) का प्रयोग किया गया।
- इस पीढ़ी के कम्प्यूटर हल्के , कम खर्चीले तथा तीव्र थे और बहुत अधिक विश्वसनीय थे। RAM(Random Access Memory) के यूज़ के कारण गति में वृद्धि हुई।
- उच्च स्तरीय भाषा में PL-1 , PASCAL तथा BASIC भाषा का विकास हुआ। तथा टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम का विकास हुआ।
- 1965 में DEC- Digital Equipment Corporation द्वारा प्रथम व्यावसायिक मिनी कम्प्यूटर PDP-8 , Programmed Data Processor-8 का विकास किया गया।
4. चौथी पीढ़ी के कम्प्यूटर (1975 – 1989)
- (LSI – Large Scale Integration तथा VLSI – Very Large Scale Integration चिप तथा माइक्रो प्रोसेसर के विकास से कम्प्यूटर के आकार में कमी तथा क्षमता में वृद्धि हुई। माइक्रो प्रोसेसर का विकास एम् ई हौफ ने 1971 में किया था इससे व्यक्तिगत कम्प्यूटर(Personal Computer) का विकास हुआ।
- चुम्बकीय डिस्क और टेप का स्थान अर्धचालक मेमोरी ने ले लिया , RAM की क्षमता में वृद्धि के कारण कार्य अत्यंत तीव्रता से होने लगा। सामानांतर कम्प्यूटिंग तथा मल्टीमीडिया का प्रचलन प्रारम्भ हुआ।
- उच्च गति वाले कम्प्यूटर नेटवर्क जैसे की LAN तथा WAN का विकास हुआ।
- ऑपरेटिंग सिस्टम में MS-DOS , MS-Windows तथा Apple IOS का विकास हुआ।
- उच्च स्तरीय भाषा में C भाषा का विकास हुआ जिससे प्रोग्रामिंग सरल हुआ।
5. पांचवी पीढ़ी के कम्प्यूटर (1989- अब तक)
- ULSI – Ultra Large Scale Integration के विकास से करोडो इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को एक चिप पर लगाया जा सका। ऑप्टिकल डिस्क जैसी सीडी के विकास ने भण्डारण क्षेत्र में क्रांति ला दी।
- नेटवर्किंग के क्षेत्र में इंटरनेट , ई-मेल(e-mail) तथा WWW(World Wide Web) का विकास हुआ। कम्प्यूटरो AI(Artificial Intelligence) का उपयोग होने लगा।
- पोर्टेबल पीसी और डेस्कटॉप पीसी ने कम्प्यूटर को मानव जीवन के लगभग प्रत्येक क्षेत्र से जोड़ दिया।
कार्य पद्धति के आधार पर कम्प्यूटर का वर्गीकरण :
तकनीक के आधार पर कम्प्यूटर को तीन भागो में बांटा गया है।
1. एनालॉग कम्प्यूटर(Analog Computer) :
इसमें विद्युत् के एनालॉग रूप का प्रयोग किया जाता है। इनकी गति अत्यंत धीमी होती है। अब इस प्रकार के कम्प्यूटर प्रचलन से बहार हो गए हैं। एक साधारण घड़ी , वाहन का स्पीडो मीटर , वोल्ट्मीटर आदि एनालॉग कम्प्यूटिंग के उदहारण हैं।
2. डिजिटल कम्प्यूटर(Digital Computer) :
ये कम्प्यूटर इलेक्ट्रॉनिक संकेतो पर चलते हैं , तथा गणना के लिए द्विआधारी अंक पद्धति(Binary Number System 0 or 1) का प्रयोग किया जाता है। इसकी गति तीव्र होती है , वर्तमान में प्रचलित आधिकांश कम्प्यूटर ऐसी प्रकार के हैं। इसमें डाटा को इलेक्ट्रॉनिक पल्स के रूप में निरूपित किया जाता है।
3. हाइब्रिड कम्प्यूटर(Hybrid Computer) :
यह कम्प्यूटर एनालॉग तथा डिजिटल दोनों कम्प्यूटरो का मिश्रण होता है।
इसमें गणना तथा प्रोसेसिंग के लिए डिजिटल रूप तथा इनपुट और आउटपुट के लिए एनालॉग रूप का प्रयोग होता है। इस तरह के कम्प्यूटर का प्रयोग अस्पताल , रक्षा क्षेत्र तथा विज्ञान आदि में किया जाता है।
आकार और कार्य के आधार पर कम्प्यूटर का वर्गीकरण :
आकार और कार्य के आधार पर कम्प्यूटर को मेनफ्रेम , मिनी तथा सुपर कम्प्यूटर में बांटा गया है।
पर्सनल कम्प्यूटर , लैपटॉप तथा पामटॉप माइक्रो कम्प्यूटर के ही विभिन्न रूप हैं।
1. मेन फ्रेम कम्प्यूटर(Main Frame Computer) :
ये आकार में काफी बड़े होते हैं तथा इसमें माइक्रो प्रोसेसर की संख्या भी अधिक होती है। इसके कार्य करने की और संग्रहण की क्षमता काफी अधिक होती तथा गति अत्यंत तीव्र होती है। ये सामन्यतः 32 या 64 बिट माइक्रो प्रोसेसर का प्रयोग करते हैं। इस पर एक साथ कई लोग अलग अलग कार्य कर सकते हैं , इसमें बड़ी मात्रा में डाटा प्रोसेसिंग किया जा सकता है।
उपयोग : बड़ी कम्पनियों , बैंक , रक्षा , अनुसंधान , अंतरिक्ष आदि क्षेत्रो में।
2. मिनी कम्प्यूटर(Mini Computer) :
ये आकार में मेन फ्रेम कम्प्यूटर से छोटे जबकि माइक्रो कम्प्यूटर से बड़े होते हैं। इसका आविष्कार 1965 में डीइसी(DEC – Digital Equipment Corporation) नामक कंपनी ने किया था। इसमें एक से अधिक प्रोसेसर का प्रयोग किया जा सकता है। इसकी संग्रहण क्षमता और गति अधिक होती है। इस पर भी कई व्यक्ति एक साथ कार्य कर सकते हैं।
उपयोग : यात्री आरक्षण , बड़े ऑफिस , कम्पनी , अनुसंधान आदि में।
3. माइक्रो कम्प्यूटर(Micro Computer) :
इसका विकास 1970 से प्रारम्भ हुआ जब सीपीयू(CPU – Central Processing Unit) में माइक्रो प्रोसेसर का उपयोग होने लगा।
इसका विकास आईबीएम(IBM) ने किया। इसमें 8,16,32 या 64 बिट माइक्रो प्रोसेसर का प्रयोग किया जाता है। VLSI औ ULSI से माइक्रो प्रोसेसर के आकार में कमी आयी है तथा क्षमता कई गुना बड़ गयी है। मल्टीमीडिया और इंटरनेट के अविष्कार ने माइक्रो कम्प्यूटर की उपयोगिता को हर क्षेत्र में पंहुचा दिया है।
उपयोग : घर , ऑफिस , स्कूल , व्यापार , उत्पादन , रक्षा , मनोरंजन , चिकित्सा आदि अनगिनत क्षेत्रों में इसका उपयोग हो रहा है।
माइक्रो कम्प्यूटर भी कई प्रकार के होते हैं।
1. पर्सनल कम्प्यूटर(Personal Computer) :
आजकल प्रयुक्त होने वाले पीसी(PC) वास्तव में माइक्रो कम्प्यूटर ही हैं। यह छोटे आकार का सामान्य कार्यो के लिए बना गया कम्प्यूटर है , इस पर एक बार में केवल एक ही व्यक्ति कार्य कर सकता है।
इसका ऑपरेटिंग सिस्टम एक साथ कई कार्य को करने की क्षमता वाला होता है।
कुछ प्रमुख पीसी निर्माता कंपनी हैं – आईबीएम(IBM) , लेनोवो , एप्पल ,एचसीएल , एचपी , डेल आदि।
पीसी(PC) का विकास 1981 में हुआ जिसमे माइक्रो प्रोसेसर – 8088 का प्रयोग किया गया। इसमें हार्ड डिस्क ड्राइव(HDD) लगा कर
इसकी क्षमता बढ़ायी गयी तथा ऐसे PC – XT नाम दिया गया। 1984 में नए माइक्रो प्रोसेसर-80286 से बने पीसी को PC-AT नाम दिया गया। वर्तमान पीढ़ी के सभी पर्सनल कम्प्यूटर को PC-AT ही कहा जाता है।
उपयोग : पीसी का विस्तृत उपयोग घर , ऑफिस , व्यापार , शिक्षा , मनोरंजन , डाटा संग्रहण , प्रकाशन आदि अनेक क्षेत्रो में किया जाता है।
2. नोटबुक कम्प्यूटर या लैपटॉप(Notebook Computer or Laptop) :
यह नोटबुक के आकार का ऐसा कम्प्यूटर है जिसे ब्रीफकेस में रखकर कही भी ले जाया जा सकता है।
इसमें पीसी(PC) की सभी विशेषताएं मौजूद रहती हैं , इसका उपयोग गोद में रख कर किया जाता है अतः इसे लैपटॉप कम्प्यूटर भी कहते हैं।
- लैपटॉप का विकास एडम आसबर्न(Adam Osborne) द्वारा 1981 में किया गया था।
- लैपटॉप बिजली के बिना भी कार्य कर सकता है इसके लिए इसमें एक बैटरी का प्रयोग किया जाता है।
- Wi-Fi और Bluetooth की सहायता से इसे इन्टरनेट से भी जोड़ा जा सकता है।
3. पॉमटाप कम्प्यूटर(Palmtop) :
यह बहुत ही छोटा कम्प्यूटर होता है जिसे हाथ में रख कर कार्य किया जा सकता है। इसे मिनी लैपटॉप भी कहा जा सकता है। इसमें कीबोर्ड की जगह पर टच स्क्रीन होता है जिससे हम इनपुट देते हैं। इसको मोबाइल की तरह भी उपयोग कर सकते हैं।
4. सुपर कम्प्यूटर(Super Computer) :
यह अब तक का सबसे अधिक शक्तिशाली एवं तेज और महँगा कम्प्यूटर है।
सुपर कम्प्यूटर में मल्टी प्रोसेसिंग और सामानांतर प्रोसेसिंग का उपयोग किया जाता है। सामानांतर प्रोसेसिंग में किसी कार्य को अलग -अलग टुकड़ो में तोड़ कर उसे अलग -अलग प्रोसेसिंग द्वारा संपन्न कराया जाता है। इस पर कई व्यक्ति एक साथ कार्य कर सकते हैं। इसकी गणनात्मक क्षमता और मेमोरी उच्च होती है।
विश्व का प्रथम सुपर कम्प्यूटर Cray K-1S है जिसका निर्माण अमेरिका 1979 में किया था।
उपयोग: पेट्रोलियम उद्योग में तेल की खानो का पता लगाने में , अंतरिक्ष अनुसंधान में , मौसम विज्ञान में , कम्प्यूटर पर परमाणु
परिक्षण आदि में किया जाता है।



भारत के सुपर कम्प्यूटर(Super Computer in India) :
भारत में परम् सीरीज के सुपर कम्प्यूटर ‘परम-10000’ का निर्माण C-DAC पुणे द्वारा 1998 में किया गया। इसकी गणना क्षमता 100 गीगा फ्लॉप यानि की 1 खरब गणना प्रति सेकंड थी। इसके निर्माण का श्रेय C-DACके निर्देशक विजय भास्कर को जाता है। सी-डैक ने एक ‘परम पदम् ‘ नाम से भी सुपर कम्प्यूटर का निर्माण किया है। इस तरह के सुपर कम्प्यूटर विश्व के कुल पांच देशों – अमेरिका , जापान , चीन , इजराइल और भारत के पास ही उपलब्ध है। ‘अनुपम ‘ सीरीज के सुपर कम्प्यूटर का विकास BARC मुंबई द्वारा जबकि पेस(Pace) सीरीज के सुपर कम्प्यूटर का विकास DRDO हैदराबाद द्वारा किया गया।
क्या आप जानते हैं ?
- ट्रांजिस्टर का आविष्कार 1947 में बेल लैबोरेटरीज में जॉन वारडीन , विलियम शाकले तथा वाल्टर ब्रेटन ने किया था।
- ट्रांजिस्टर अर्द्धचालक पदार्थ सिलिकॉन या जर्मेनियम का बना एक तीव्र स्विचिंग डिवाइस होता है
Good information 🙏